Digital Birth Certificate 2025: भारत की नई डिजिटल पहचान प्रणाली का राज्यवार क्रियान्वयन शुरू

Digital Birth Certificate 2025: भारत की नई डिजिटल पहचान प्रणाली का राज्यवार क्रियान्वयन शुरू! 2025 में भारत सरकार ने नागरिकों को पारंपरिक कागज़ी जन्म प्रमाण-पत्र से उबारकर एक नवीन डिजिटल व्यवस्था की शुरुआत की है। इसे ‘डिजिटल बर्थ सर्टिफिकेट’ का नाम दिया गया है, जो न केवल जन्म का प्रमाण-पत्र है, बल्कि हर व्यक्ति को उसकी पहचान के एक विश्वसनीय डिजिटल प्रमाण के रूप में भी सेवित करेगा। इस प्रणाली का उद्देश्य मैनुअल रजिस्ट्रेशन की जटिलताओं को समाप्त कर, ओपन-सोर्स टेक्नोलॉजी और ब्लॉकचेन जैसी आधुनिक तकनीकों की मदद से प्रमाण-पत्र को नकली-प्रमाणपत्रों से सुरक्षित बनाना है। 2025 की पहली तिमाही में इस योजना को अलग-अलग राज्यों में आरंभ किया गया, और अब राज्यवार पायलट प्रोजेक्ट से लेकर पूरे देश में इसका विस्तार किया जा रहा है।

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डिजिटल बर्थ सर्टिफिकेट क्या है

डिजिटल बर्थ सर्टिफिकेट एक ई-प्रमाणपत्र होता है, जिसे आप अपने मोबाइल या कम्प्यूटरीकृत डिवाइस पर डाउनलोड कर सकते हैं। इसमें जन्म की तारीख, समय, स्थान तथा माता-पिता की जानकारी डिजिटल रूप से एन्क्रिप्टेड होती है। पारंपरिक कागज़ी सर्टिफिकेट की तरह इसे संभालने या गुमाने का डर नहीं रहता, क्योंकि इसे सुरक्षित डिजिटल लॉकर (DigiLocker) में स्टोर किया जा सकता है। साथ ही, सरकारी विभागों, बैंकों या शैक्षणिक संस्थानों में सत्यापन के लिए केवल QR कोड स्कैन करना पर्याप्त होगा, जिससे लंबे चक्रवृद्धि सत्यापन की प्रक्रिया हट जाती है।

नई डिजिटल पहचान प्रणाली की विशेषताएँ

इस नई प्रणाली की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह पूरी तरह विकेन्द्रीकृत (decentralized) संरचना पर आधारित है। ब्लॉकचेन तकनीक के कारण एक बार जारी किए गए सर्टिफिकेट में किसी भी प्रकार का परिवर्तन असंभव हो जाता है, जिससे फ्रॉड की संभावनाएँ न्यूनतम रह जाती हैं। साथ ही, इंक्रिप्टेड स्टोरेज के चलते केवल अधिकृत विभाग ही प्रमाण-पत्र को देखने या सत्यापित करने में सक्षम होंगे। उपयोगकर्ता को अपने प्रमाण-पत्र पर नियंत्रण रखने के लिए एक यूनिक डिजिटल आईडी मिलता है, जिसकी सहायता से वह किसी भी समय, किसी भी जगह सत्यापन करवा सकता है।

राज्यवार कार्यान्वयन की रूपरेखा

ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में समान रूप से सुविधा पहुंचाने के लिए इस परियोजना को दो चरणों में लागू किया जा रहा है। पहले चरण में पाँच प्रमुख राज्यों—महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और गुजरात—में पायलट प्रोजेक्ट आरंभ हुआ। इनके बाद चरण-द्वितीय में अन्य राज्यों में शीघ्र ही विस्तार का काम शुरू कर दिया गया। प्रत्येक राज्य में स्वास्थ्य विभाग एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग मिलकर जिले स्तर पर आवश्यक प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर रहे हैं। स्थानीय कार्यालयों में डिजिटल कियोस्क लगाए जा रहे हैं, जहाँ ग्रामीण नागरिक बिना इंटरनेट सुविधा के भी अपना प्रमाण-पत्र डाउनलोड कर सकते हैं। इस प्रकार, राज्यवार कार्यान्वयन का ढांचा पूरी तरह केंद्रीकृत नियंत्रण के साथ स्थानीय स्वायत्तता को प्राथमिकता देता है।

आवेदन प्रक्रिया और सुविधाएँ

डिजिटल बर्थ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करना बेहद सरल बनाया गया है। इसके लिए किसी भी Sewa Kendra या डिजिटलीकरण केंद्र पर जाना होगा, जहाँ संबंधित अधिकारी आपका नाम, जन्म तिथि, स्थान आदि एंट्री करके आपके आधार नंबर या अन्य सरकारी पहचान से लिंक कर देंगे। यदि आवेदनकर्ता के पास इंटरनेट है, तो घर बैठे ही DigiLocker ऐप या पोर्टल पर लॉगिन करके भी आवेदन कर सकता है। जन्म के तुरंत बाद अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र से जारी किए जाने वाले यूनिक कोड से प्रमाण-पत्र को स्वचालित रूप से जनरेट कर लेने का विकल्प भी मौजूद है। प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के बाद, नागरिक इसे PDF के रूप में डाउनलोड कर सकते हैं और QR कोड स्कैनिंग से कहीं भी सत्यापन के लिए प्रस्तुत कर सकते हैं।

लाभार्थियों के लिए क्या मायने रखता है

डिजिटल बर्थ सर्टिफिकेट का सबसे बड़ा लाभ यह है कि बच्चे को स्कूल में नामांकन या स्थायी पहचान पत्र जारी करते समय अनावश्यक दस्तावेज़ी जाल से निज़ात मिल जाती है। साथ ही, विदेश यात्रा या वीज़ा आवेदन की प्रक्रियाएँ कहीं अधिक तीव्र और पारदर्शी हो जाती हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए भी नागरिकों को बार-बार मूल कागज़ जमा करने की आवश्यकता नहीं रहती। बैंक खाते खोलने, चयनात्मक रोजगार या सामाजिक कल्याण योजनाओं में नामांकन में भी केवल डिजिटल सर्टिफिकेट प्रस्तुत करना काफी होता है।

चुनौतियाँ और समाधान

किसी भी नई तकनीकी पहल की तरह इस परियोजना में भी शुरुआत में चुनौती सामने आई—ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी, कम डिजिटल साक्षरता, और स्थानीय अधिकारियों में प्रशिक्षण की खामी। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए राज्य सरकारें मोबाइल वैन आधारित कियोस्क, स्थानीय भाषा में प्रशिक्षण वीडियो और ऑन-साइट सहायता टीम भेज रही हैं। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने विनियमों में बदलाव करते हुए कोरोना-काल जैसे आपातकालीन दौर में डिजिटल हस्ताक्षर की स्वीकार्यता भी बढ़ा दी है, जिससे एप्लिकेशन प्रक्रिया और भी सरल बनी है।

भविष्य की संभावनाएँ

डिजिटल बर्थ सर्टिफिकेट सिर्फ एक आरंभिक चरण भर है। आने वाले वर्षों में इसे डिजिटलीकरण की अन्य परियोजनाओं, जैसे डिजिटल वोटर आईडी, डिजिटल ड्राइविंग लाइसेंस, और फसल बीमा पोर्टल से जोड़ने की योजना है। एकीकृत डिजिटल पहचान के तहत नागरिक को ‘एक क्लीक’ में सभी सरकारी सेवाएँ उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व मशीन लर्निंग आधारित सत्यापन तकनीकों से प्रमाण-पत्र और अधिक मजबूत और फर्जी-रहित बनाए जाने की सोच है।

निष्कर्ष

2025 में शुरू हुई डिजिटल बर्थ सर्टिफिकेट योजना ने भारत में पहचान-पत्र प्रणाली में एक नई क्रांति की शुरुआत कर दी है। यह न केवल कागज़ी प्रक्रियाओं को कम करने में सहायक है, बल्कि नागरिकों को तुरंत और सुरक्षित रूप से अपना पहचान-पत्र उपलब्ध कराकर सरकारी सेवाओं की पहुँच को और आसान बनाएगी। राज्यवार कार्यान्वयन के सफल मॉडल से यह स्पष्ट हो चुका है कि उचित तकनीकी संरचना, स्थानीय प्रशिक्षण और जनजागरूकता के मिलेजुले प्रयास से भारत एक निर्बाध और विश्वसनीय डिजिटल पहचान अवसंरचना का निर्माण कर सकता है।

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